ध्रुपद – एक दर्शन


भारतीय दर्शन परंपरा तथा भारतीय संगीत परंपरा का निरीक्षण करते ही कुछ समानताएं सहज रूप से दिखाई पड़ती है।  
– वेदों का अपौरुषेय होना तथा रागों का भी अपौरुषेय होना, इसमे कोई तो संकेत जरूर है।  
– इन दोनों का मौखिक परंपरा से विकास और जतन भी, इनके आपसी सम्बन्ध का सूचक है।  

भारतीय दर्शन परम्परा विश्वकी प्राचीनतम परम्पराओ में से एक है।  उस परम तत्व को, जो शब्दों से परे है और जो अनुभूति में निहित है उसे ऋषिओने – द्रष्टाओं – सिद्धो ने अनुभव से समजा और अपने अपने माध्यम से व्यक्त किया। किसी का माध्यम शब्द तो किसीका नाद।  संभवतः उस शब्दातीत को व्यक्त करने में जितने ज्यादा शब्द उतना ही वो सत्य से दूर हो जाता । ॐ कार ध्वनि व उसके उच्चारण में जो अनुभव और शांति मिलती है वह ओमकार पे लिखे पुस्तक में नहीं।  इसीलिए हमारे मनीषिओने कमसेकम शब्दों में (मंत्र/सूत्र के रूप में) सत्य के बारे में समजानेका प्रयास किया, और बाद में उसपे टिकाए लिखी गई और विस्तार पूर्वक ग्रन्थनिरूपण किया गया।  

नाद की / संगीत की परंपरा भी अल्प से आरम्भ हो कर आज बहुरूपी व बहुआयामी फलित हुई है।  अनेक प्राचीन ग्रंथो के अनुसार भगवान् शंकर पांच रागो के जनक माने गए है।  परंतु आज के रागों की संख्या और विविधता, बाद में हुए विचारकों और साधकों की अंतर्जगत की विविधरंगी यात्रा के और उनके योगदान के पद चिन्ह है।  प्राचीन समय में नाद की विभिन्न शाखाओ को ‘सामगान’ में समाहित किया गया, जिसमे शब्दों को गान का स्वरूप मिला और शब्दों और स्वरों को नाद के परिप्रेक्ष्य में सुरक्षित रखा गया और मौखिक परम्परा के द्वारा आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाया गया।

इसी नाद तत्व की सेवा और साधना से भारतीय शास्त्रीय संगीत में अनेक शाखाओं और परम्पराओं का विकास हुआ। इन शाखाओं में जिसे ‘जननी’ का बिरुद मिला है ऐसे ध्रुपद संगीत की विकास यात्रा और उसका वर्तमान पल्लवित स्वरूप, श्रवणीय और दर्शनीय है।  

आज के ध्रुपद संगीत का जन्म सामगान – जातीगान – प्रबंधगान जैसी प्राचीन शैलिओं के गर्भ से हुआ। और उसकी विकास यात्रा अनेक साधकों के और निष्ठावान तपस्विओं के अथाग प्रयासों से हुआ । राजा – महाराजाओं का सादर आश्रय भी ध्रुपद संगीत के जीवित रहनेका एक महत्वपूर्ण पायदान रहा। इस संगीत की यात्रा वेदों से और बाद में मंदिरों से प्रवाहित होने के कारण, पारमार्थिक व लौकिक इन दोनों जगत से इसका सम्बन्ध रहा।  

भारतीय संगीत में ध्रुपद संगीत एक पुरातन नाद परंपरा है। इस परंपरा में नाद की भाषा का बहोत गहन विचार हुआ है। इसमें नाद के माध्यम से होने वाले अंतर मन के अभ्यास और उसकी अभिव्यक्ति की एक अनोखी रीत है।

वर्तमान ध्रुपद संगीतके प्रस्तुतीकरण में मुख्य दो भाग – आलाप और बंदिश होते है।
यहाँ आलाप का विस्तार आ, र, न, री, ना,  नुम  इत्यादि वर्णों के द्वारा किया जाता है , जोकि  “ॐ अनंत हरी नारायण ” इन शब्दों से हुए  अपभ्रंश का नादमय रूप है।  ॐ से ‘नुम’ का आविर्भाव , हरी से ‘री’ का आविर्भाव और नारायण से “ना र न न ” इस प्रकार ‘ॐ अनंत हरी नारायण’ इन सार्थक शब्दों से अपभ्रंश हुए नादाक्षरों द्वारा आलाप के माध्यम से ऐसे जगत की बातें की जाती है जो धर्म, देश  या भाषा से  परे है। आलाप, निराकार से साकार व साकार से निराकार का, प्रत्येक सांस में किया गया एक नादमय आविष्कार है। हर एक अक्षर का अपना एक नादमय वातावरण बनता है, अगर उसका उच्चार शुद्धता से किया जाए। ‘आकार’ में जो नादमय संभावनाएं और असर होते है वह ‘उकार’ या ‘अकार’ से भिन्न होती है। और जब इन सब छटाओं को जोड़ कर राग के, स्वर, लय के और भाव के माध्यम से आविष्कार किया जाए तो अनंत संभावनाएँ दीखने लगती है।      

पं. उदय भवालकर, ध्रुपद आलाप के आंतरिक सौंदर्य का वर्णन करते हुए

ध्रुपद के आलाप मे साहित्य (बंदिश/पद) का आश्रय न लेते हुए राग का अविष्कार किया जाता है। बंदिश की अनुपस्थिति में गायक को किसी प्रकार की शाब्दिक या सांगीतिक निबद्धता की सहाय नहीं मिलती, और ऐसी अवस्था में नाद के माध्यम से ही, राग के स्वरूप में नावीन्य प्रकट करना, एक मात्र उपाय बचता है।  फलस्वरूप गायक को आलाप द्वारा राग में भावाविष्कार करनेके लिए एक विशाल अवकाश मिलता है।

जहा शब्द भी न हो, केवल नाद से ही राग की अभिव्यक्ति हो और अनेक रसो का आविर्भाव घटित हो, यह ध्रुपद परंपरा की विशेषता है।  

उस्ताद ज़िया मोहिउद्दीन डागर, रुद्र विणा पर यमन राग का आवाहन करते हुए

ध्रुपद संगीत में चार बानियाँ मानी गई है। गोहार, नोहार, खंडहार और डागर बानी। इन चारों बानिओं  की परंपरा का जन्म संगीत रत्नाकर में उल्लिखित पांच गीतिओ (शुद्धा, भिन्ना, गौड़ा, वेगस्वरा, और सधारिणी) से माना गया हे। इन चारों बानिओं  में नाद की अभिव्यक्ति की शैली में विभिन्नता देखि जाती थी। अर्थात सांगीतिक अलंकरण की रीत भिन्न होती थी । उदाहरणार्थ वेगस्वरा गीति में सूरों का उच्चारण वेग से होता था इत्यादि। कहनेका तात्पर्य यह है की ध्रुपद संगीत की इन विभिन्न बानिओ में स्वर का, राग का, ताल का, और शब्द का दर्शन विभिन्न आयामों से हुआ। इतनाही नहीं पर एक ही बानी में ‘एकम सत विप्राः बहुधा वदन्ति ‘ इस उक्ति के अनुसार हर गायक – वादक – और साधक को अपनी अपनी गुरु परंपरा – तालीम – साधना और संस्कार के अनुसार स्वरों के, रगों के, तालों के, बंदिशों के बहुरंगी दर्शन हुए।    

नाद की भाषा अमूर्त होने के कारण वह मानवीय विचारों की सीमा के पार, ह्रदय की भाषा बन जाती है। इसलिए  मन, विचार, तर्क इत्यादि , जो अनुभूति में बाधक होते है, उनसे सहज रूप से मुक्ति पाने के लिए नाद की भाषा एक माध्यम बन सकता है।

ध्रुपद संगीत इस नाद युक्त भाषा की एक उदात्त मौखिक परम्परा लिए, अपने ध्रुवत्व की गरिमा संभाले, सदियों से, आज तक धैर्य पूर्वक अटल रहा है और फलित हो रहा है। नाद में गर्भित अनेक विध रहस्य, आश्चर्य और नावीन्य को प्रकट कर सकें ऐसी सांगीतिक क्षणों की प्रतीक्षा में रत इस द्रुपद संगीत को समझनेमें, मनुष्य ही अपने आप को सीमित महसूस करता है।  

इस गुरुमुखी मौखिक परम्परा में नाद में निहित सार को, बड़े परिश्रम से और जतन से, भक्तिमार्गी और ज्ञान मार्गिओं ने आने वाली पीढ़ी तक पहुंचाया है। प्राचीन संगीत का यह अर्वाचीन स्वरूप आजभी उन नादसमुद्र की अनंत संभावनाओं के साथ गोताखोर की प्रतीक्षा में रत है।  

About the Curator:

Chintan Upadhyay, started his training in music at a very tender age under his parents. He learned from Shri Laxmipati Shukla (disciple of Pt. Omkarnath Thakur) and Shri Ashvin Andhariya (nephew of Shri Rasiklal Andhariya). He did his Masters in Classical Vocal from Lalit Kala Kendra, Pune University, under the guidance of Dr. Vikas Kashlakar and Pt. Vijay Koparkar. He surrendered his heart towards Dhrupad and has been learning Dhrupad vocal from Pt. Uday Bhawalkar since 2004.

Chintan was awarded Junior Research Fellowship for Dhrupad studies by Government of India, and was alloted ‘B High’ grade from All India Radio as a Dhrupad vocalist. He has been performing and teaching Dhrupad in india and abroad and has been spreading the fragrance of Dhrupad.

Chintan has started a centre in Vadodara for sharing his knowledge and experience that he has been blessed, with the seekers of this art form.


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Comments

24 responses to “ध्रुपद – एक दर्शन”

  1. Dr.Haresh Rajyaguru Avatar
    Dr.Haresh Rajyaguru

    ખુબ સરસ, અભિનંદન

    1. Chintan Avatar
      Chintan

      આભાર હરેશ

  2. Tarjani Avatar
    Tarjani

    Great going… keep up the good work…many Congratulations ?

    1. Chintan Avatar
      Chintan

      Thanks a lot Tarjani ??

  3. Excellent , Amazing, We regret, We have neither words to appreciate

    1. Chintan Avatar
      Chintan

      Thanks a lot Tushar ji for your inspiring feedback ?

  4. Bhadra Vadgama Avatar
    Bhadra Vadgama

    Very informative and well written piece. I wonder if your British students will need an English translation!

    1. Chintan Avatar
      Chintan

      Namaste Bhadra Ben ?thank you so much for your inspiring words ??yes I am just figuring out for the English translation .. shall share that too once I get it done. ??

  5. Good writing. Soft yet convincing. Keep it up.

    1. Chintan Avatar
      Chintan

      Thank you Hitu uncle ??

  6. Dr Kashyap Dave Avatar
    Dr Kashyap Dave

    પ્રિય ચિંતન, સુંદર આલેખન ! ધ્રુપદ જેવા ગૂઢ વિષય માં તમારા જેવા તાર્કિક અને તટસ્થ વ્યક્તિના આગમનથી ધ્રુપદ નું ભવિષ્ય વિશેષ ઉજજવળ છે. મુદ્દાસર છણાવટ ને કારણે બિનજરૂરી મહિમા મંડન અટકાવી શકાયું છે. ભવિષ્યમાં વધુ આવા લેખ સાથે આવો એવી શુભેચ્છા સહ !

    1. Chintan Avatar
      Chintan

      આભાર કશ્યપ ભાઈ ? આપનો પ્રતિભાવ ખૂબ મૂલ્યવાન છે ??

  7. Kalapi Pathak Avatar
    Kalapi Pathak

    ખૂબ સરસ માહિતી અને લખાણ..
    અભિનંદન.

    1. આભાર કલાપી ભાઈ ??

  8. Bhavik Mankad Avatar
    Bhavik Mankad

    Wonderful read, Dada! ?

    1. Thank you dear Bhavik for your inspiring feedback ! Equally enjoyed your article too. Was beautifully presented ??

  9. ashish kharod Avatar
    ashish kharod

    very informative.

    1. Thank you Ashish Bhai !?

  10. Uday Bhatt Avatar
    Uday Bhatt

    Indeed a wonderful and an informative writing!

    1. Thank you so much Uday bhai for your inspiring words ??

  11. Dave Chanda Avatar
    Dave Chanda

    Dear Artist Chintan Bhai very Well said to Draupad History very informative and You are Icon to youth and very Dedicated person we Proud of you Brother ????

    1. Thank you Chanda Ben for your such a nice and inspiring feedback ??

    2. Aparna Vyas Avatar
      Aparna Vyas

      So very explicit. As fluid and mellifluous as your Drupad gayaki.

      1. Thank you so much Aparna Ben for your inspiring feedback ??

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