It all started when a friend said he wanted to sing Mandar’s compositions. Or maybe it started when Mandar decided to sing his compositions in public. Or maybe even before that when he started composing ?
Who knows how things begin, how we journey and where they will take us…
Mandar’s personal quest to seek the experience of the divine, to be vulnerable to moments of transformation only brought him closer to works of Indian saints and mystics.
As a musician who could deeply connect with words it was never an effort to put tune to the poetry. However it was always a process of understanding, imbibing, observing, living and the instantaneous falling in love that continues to happen even now.
The significance of music is life is known and experienced by all. Many have said that when truth is spoken it looses something – when stated in words the truth is only partial. And this is when music truly speaks that cannot be shared through words.
AMEERAS is an attempt to sing transformation.
Thus Ameeras will always be a process for all of us involved. It will be all the moments we spend together. It will be our collective relationship; not just between the performers but also the audience.
We share with you a selection of poetry that we have presented till date.
Not all are sung in one presentation and there are many more compositions we are yet to sing!
कबीर दोहे
बलिहारी वह दूध की, जामें निकरे घीव |
आधी साखी कबीर की, चारो वेदो का जीव।।
साखी आँखी ग्यान की, समुझी देखू मन माही।
बिनु साखी संसार का झगरा छूटत नही।।
पोथी पढ़ी पढ़ी जग मुआ पंडित भया न कोय।
ढ़ाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।।
फुलवा भार न लै सके कहे सखियन सो रोय।
ज्यो ज्यो भीजे कामरी त्यों त्यों भरी होय।।
सुखिया सब संसार है खाये और सोये।
दुखिया दास कबीर है जागे और रोये।।
जाग पियारी
जाग पियारी अब का सोवे।
रैन गयी दिन कहे को खोवे ।।
जिन जगा तिन माणिक पाया।
तै बौरी सब सोये गवाया ।। १ ।।
कहे कबीर सोही धन धन जागे।
सबद बाण उर अंतर लागे ।। २ ।।
जाग पियारी, जाग पियारी अब का सोवे।
रैन गयी दिन कहे को खोवे ।। १ ।।
पानी में मीन प्यासी
पानी में मीन प्यासी मोहे सुन सुन आवे हांसी।
आतम ग्यान बिन नर भटके कोई मथुरा कोई कशी ।
मिरगा नाभी बसे कस्तूरी बन – बन फिरत उदासी।।
जल बीच कमल कमल बीच कलियाँ ता पर भवर निवासी ।
ता मन बेस त्रैलोक्य भयो है यति – सति और सन्यासी।।
है हाज़िर तेहि दूर बतावें दूर की बात निरासी ।
कहे कबीर सुनो भाई साधो, (२) गुरु बिन भरम न जासी।।
देही असोनिया देव
देही असोनिया देव । वृथा फिरतो निर्दैव ।।१।।
देव आहे अंतर्यामी । व्यर्थ हिंडे तीर्थग्रामी ।।२।।
नाभी मृगाचे कस्तुरी । व्यर्थ हिंडे वनांतरी ।।३।।
साखरेचे मूळ ऊस ।तैसी देही देव दिसे ।।४।।
दुधी असता नवनीत ।नेणे तयाचे मथित ।।५।।
तुका सांगे मूढजना ।देहीं देव का पाहाना ।।६।।
बिनू देखे उपजे नाही आसा
बिनु देखे उपजै नहीं आसा। जो दीसै सो होई बिनासा।। १ ।।
बरन सहित जो जपै नामु। सो जोगी केवल निहकामु ।। २ ।।
परचै रामु रवै जो कोई। परसु परचै दुबिधा न होई ।। ३ ।।
फल कारन फूली बनराइ। फल लागा तो फूल बिलाई ।। ४ ।।
कहे रविदास परम बैराग। ह्रिदय राम को न जपसि अभाग ।। ५ ।।
सदा सर्वकाळ
सदा सर्वकाळ अंतरीं कुटील । तेणें गळां माळ घालूं नये ॥ध्रु.॥
ज्यासी नाहीं धर्म दया क्षमा शांति । तेणें अंगीं विभूती लावूं नये ॥१॥
जयासी न कळे भक्तीचे महिमान । तेणें ब्रह्मज्ञान बोलू नये ॥२॥
ज्याचें मन नाहीं लागलें हातासी । तेणें प्रपंचासी टाकुं नये ॥३॥
तुका ह्मणे ज्यासी नाहीं हरिभक्ती । तेणें भगवें हातीं धरूं नये ॥४॥
क्या मांगू
क्या मांगू कछु थीर न रहाई, देखत नयन जरे जग जाई।
लंका सो कोट समद सी खाई, ता रावण का खबर न पाई ।।१।।
आवत संग ना जावत संगाती कहा गए दर बंधे हाती ।।२ ।।
एक लख पूत सवा लख नाती, ता रावण धर दीया न बाती ।।३ ।।
कहत कबीर अंत की बरी, झड़ी जैसे चले जुआरी ।।४ ।।
रैदास दोहे
ज्यों सुध आवत पीव की, विरह उठत तन लाग।
ज्यों चूने की कांकरिया, ज्यों छिटकै त्यों आग ।। १ ।।
अमरित रास इक बूंद को, तरफत हूं दिन रैन।
रैदास अमीरस बिन पिए, जियरा न पावै चैन।। २ ।।
कोयल तरसे आम्ब को, चातक तरसै नीर।
रैदास लोचे दरस को, प्राण परत नाही धीर ।। ३ ।।
रैदास मोरे मन लागियो, राम प्रेम को तीर।
राम रसायन जो मिलैही, हरै हमारी पीर ।। ४ ।।
तुज सगुण म्हणो की
तुज सगुण म्हणो कीं निर्गुण रे ।
सगुण-निर्गुण एकु गोविंदु रे ॥१॥
तुज स्थूळ म्हणो कीं सूक्ष्म रे ।
स्थूळ-सूक्ष्म एकु गोविंदु रे ॥२॥
तुज दृश्य म्हणो कीं अदृश्य रे ।
दृश्य-अदृश्य एकु गोविंदु रे ॥३॥.
तुज व्यक्त म्हणो कीं अव्यक्तु रे ।
व्यक्त-अव्यक्त एकु गोविंदु रे ॥४॥
निवृत्ती प्रसादें ज्ञानदेवो बोले ।
बाप रखुमादेविवरू विठ्ठलु रे ॥५॥
मुंगी उडाली आकाशी
मुंगी उडाली आकाशीं ।
तिणें गिळीलें सूर्याशीं ॥१॥
थोर नवलाव जांला ।
वांझे पुत्र प्रसवला ॥२॥
विंचु पाताळाशी जाय ।
शेष माथां वंदी पाय ॥३॥
माशी व्याली घार झाली ।
देखोनी मुक्ताई हांसली ॥४॥
इस घट अंतर
इस घट अंतर बाग़ बगीचे, इसी में सिरजनहरा।
इस घट अंतर सात समुन्दर, इस घट अंतर सात समुन्दर
इसी मैं नौ लख तारा।।१ ।।
इस घट अंतर पारस मोती, इस घट अंतर पारस मोती
इसी में उठत फुहारा ।।२ ।।
कहत कबीर सुनो भाई साधो
इसी में साई हमारा ।।३ ।।
प्रथमे गगन की…
प्रथमे गगन की पुहुमी प्रथमे, प्रथमे पवन की पाणी।
प्रथमे चंद की सूर प्रथमे प्रभु, प्रथमे कौन विनाणी।१।
प्रथमे प्राण की पिंड प्रथमे प्रभु, प्राथमे रकत की रेतम ।२।
प्रथमे पुरुष की नारी प्रथमे प्रभु, प्रथमे बीच की खेतम ।३।
प्रथमे दिवस की रैणि प्रथमे प्रभु, प्रथमे पाप की पुण्यं।४ ।
कहे कबीर जहाँ बसहु निरंजन, तहा कछु आहि की सुन्यं ।५।
These selected works are like a drop in the ocean.
We request you to take the personal journey to finding more such gems. Below is the list of the seekers we are blessed to sing.
Sant Dyaneshwar
Sant Muktai
Sant Kabir
Sant Raidas
Sant Meerabai
Sant Tukaram
Sant Dadu Dayal
Sant Sahajobai
Here is an introduction to the AMEERAS team.
Composer: Mandar Karanjkar
Fellow Musicians and Friends: Alhad Alsi, Aalok Alsi, Leeladhar Chakradeo, Madhavi Chakradeo, Parth Tarabadkar, Saumitra Kshirsagar and Dakshayani Athalye.
The page is a growing repository of thoughts and compositions.
AMEERAS had a private debut in the Diwali of 2022 followed by the first public performance on 12 November 2022 at the Rupa Rahul Bajaj Centre for Environment and Art.